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________________ १६४] भगवान पार्श्वनाथ । पुष्पकके मध्य एक महा कमलवन है सो वहासे विमानमें बैठकर रावण दक्षिण समुद्रकी ओर लकाको चला और त्रिकूटाचल पर्वत पर पद्मरागमणिमई चैत्यालय देखे । इधर सूर्यरज और रक्षरज वानरवंशियोंने भी पाताल लंकाके अलकनगरसे निकलकर किहकूपुर बानरद्वीपमें जा घेरा । राजा इदके ठिकपाल यमने उनसे युद्ध किया, जिसमें वानरवशी कैदी हुए ! मेघलवनमे नरक नामक बदीगृहमें यह वैद रक्खे गए । इसपर रावणने यमको आ घेरा । यम भागकर राजा इंद्रके पास रथनूपुर जा पहुंचा | रावण लौटकर त्रिकूटाचल पर्वतको चला गया, जहांसे समुद्र दिखाई पड़ता था । उपरांत किहकधपुरमें वानरवंशी सुर्यरनके पुत्र वाली और सुग्रीव हुए। पाताल लंकामें खरदूषण रावणका बहनोई राज्याधिकारी हुआ । पाताल-लंकामें मणिकांत पर्वत था। वाली वैराग्य पा मुनि होगये, रावण दिग्विजयको निक्ले मो सुग्रीवने उससे मंत्री कर ली। पहले उनने अंतरद्वीप वश किये फिर संध्याकार, सुवेल, हेमा, पूर्ण, सुयोधन, हसद्वीप. वारिहव्यादि देशों के विद्याधर राजाओसे उनने भेंट ली । उपरान्त रथनपुरके राजा इंद्रको वश करने रावण चला सो पहले अपने खरदूषण बहनोईके पास पाताल लंकामें डेरा डाले । हिडम्ब, हैहिडिम्ब, विकट, त्रिजट, ह्यमाकोट, सुनट, टंक, सुग्रीव, त्रिपुर, मलय, हेमपाल, कोल, वसुंदर इत्यादि राजा उसके साथ थे । खरदूषण कुभ, निकुम्भ, आदि राजाओके साथ इनके साथ होलिया । यहांसे निकलकर रावणको सूर्यास्त विव्याचल पर्वतके समीप हुआ । नर्मदाके तट रावण ठहर गये। वहां माहिमतीके राजा सहस्त्रररिमकी केलि-क्रीडासे रावणको पूजाम
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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