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________________ १५२] भगवान पार्श्वनाथ । निकट अवस्थित उनका दीक्षावन रतलाया गया है। इसलिये अहिच्छत्र में जिस नागराजने भगवानकी विनय की थी और उनपर सप-फण कर युक्त छत्र लगाया था वह एक नागवगी राना ही होना चाहिये । नागवंगी लोगोके संप पण कर युक्त छत्र गीगपर रहता था वह पूर्वोल्लिखित मयुराक आयागपटने की नागकन्याक उल्लेखसे स्पष्ट है एवं वहींकी एक अन्य जैन मूर्तिमें स्वयं एक नाग राजाका चित्र है और उसके शीशपर भी नागफणका छत्र है। तिसपर चीन यात्री ह्यनत्तांगका कथन है कि वौद्धोका भी अहिच्छत्रसे सम्बन्ध था । वहा वह एक 'नागहृद' बतलाता है जिसके निक्टसे बुद्धने सात दिन तक एक नाग गजाको उपदेश दिया था। राजा अगोकने यहीं एक स्तूप बनवा दिया था।' आजकल वहां केवल स्तूपका पता चलता है जो 'छत्र' नामसे प्रख्यात है । इमसे कनिघम सा० यह अनुमान लगाते है कि नाग राजाके बौद्ध हो जानेपर उसने बुद्धपर नाग फणका छत्र लगाया होगा, जिसके ही कारण यह स्थान 'अहिच्छत्र' के नामसे विख्यात् होगया। परन्तु बात दर असल यू नहीं है, क्योंकि जनशास्त्रोंके कथनसे हमें पता चलता है कि वह स्थान म० बुद्धके पहिलेसे अहिच्छत्र कहलाने लगा था। हत्भाग्यसे कनिधम सा०को जैनधर्मके बारेमें कुछ भी परिचय प्राप्त नहीं था. उसी कारण वह अहिच्छत्रका जन सम्बंध प्रगट न कर सके । अतएव युनत्सांगके उक्त उल्लेखसे यह तो स्पष्ट ही है कि अहिच्छत्रमें नाग गजाओंका राज्य म० बुद्धके समयमें १-कनिंघन, एनशियेन्ट जागराफी ऑफ इन्डिया पु० ४१२ । 2-पूर्व प्रमाण ।
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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