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________________ धरणेन्द्र-पद्मावती-कृतज्ञता-ज्ञापन । [१४९ लिये इन्हें नागवंशी कहना अनुचित न होगा। नागवशी राजाओने जो अपनी राजधानीका नाम पद्मावती रक्खा था, वह भगवान पार्श्वनाथनीकी शासनदेवी पद्मावतीकी स्मृति दिलानेवाला प्रगट होता है। यह भी नागवंशियोके जैन धर्मप्रेमी होने में एक संकेत कहा जासक्ता है । भोगवतीके नागराजाओंकी ध्वजाका सर्प चिन्ह भी इसीका द्योतक है; क्योंकि भगवान पार्श्वनाथका लक्षण सर्प था। साथ ही वीशनगर (जैन शिलालेखोका भदिलनगर) से भी नाग राजाओके सिक्के मिले हैं। और यह स्थान भगवान शीतलनाथजीका जन्मस्थान था। यहां भी नागरानाओंका संबंध एक पुज्य जैन स्थानसे प्रकट होता है। साथ ही अहिच्छत्रके राजा वसुपाल जैन धर्मानु यायी थे यह बात आराधनाकथाकोषकी एक कथासे प्रमाणित है। और अहिच्छत्रमें नागराजाओंका भी राज्य था, संभव है, राजा वसुपाल भी नागवशी राजा हों। किन्तु शिमोगा तालुकाके कल्लूरगुड्ड ग्रामसे प्राप्त सन् ११२२ के शिलालेखमें गंगवंशकी उत्पत्तिका जिकर करते हुये, उसी वंशके एक श्रीदत्त नामक राजाको अहिच्छत्र पर राज्य करते लिखा है तथा यह भी उल्लेख है कि जब श्री पार्श्वनाथजीको केवल ज्ञान हुआ, तब इस राजाने उनकी पूजा की थी, जिससे इन्द्रने प्रसन्न हो पांच आभूषण श्रीदत्तको दिए थे और अहिच्छत्रका नाम विजयपुर भी प्रसिद्ध हुआ था । (देखो मद्रास व मैसूर जैन स्मार्क ट० २९७) अतः उपरोक्त कथाके राजा वसुपाल उपरान्तके-संभवतः श्री महावीर म्वामीके ममयमें हुए प्रकट होते हैं, क्योंकि भगवान पार्श्वनाथजीसे १-म० भा०के प्रा० जनस्मारक पृ० ६२ । २-भाग २ पृ० १०५ ।
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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