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________________ ४६] भगवान पार्श्वनाथ । हुआ मिलता भी है और यह नागलोकवासी अपने आदि पुरुष काश्यप बतलाते ही हैं । इम अपेक्षा यदि श्रीपाश्र्वनाथजीके कुलका सम्बन्ध इन नागलोकोसे होना संभव है परतु इसके साथ ही जैन शास्त्रोंमें इन्हें स्पष्टत. इश्वाक्वशी लिखा है, यह भी हमें मूल न जाना चाहिये । अत इतना तो स्पष्ट ही है कि नागवंशका सम्बन्ध अवश्य ही भगवान पार्श्वनाथनीसे किसी न किसी रूपमें था। तथापि मथुराके कंकाली टीलेसे नो एक प्राचीन जैन कीर्तिया मिली हैं, उनमे कुगानसंवत ९५ (ईसाकी दूसरी शताब्दि) का एक आयागपट मिला है। इस आयागपटमें एक स्तूप भी अंकित है जिसमे कई तीर्थकगेके साथ एक पार्श्वनाथस्वामी भी हैं। इनसे नीचेकी और चार स्त्रियां खड़ी हैं, जिनमें एक नागकन्या है; क्योकि उसके सिम्पर नागफण है । क्वाचित यह उपदेश सुनने आई हुई दिखाई गई हैं। इससे मी नागलोगोंका मनुष्य और उनका मैनधर्मका भक्त होना स्पष्ट प्रकट है। सिंघप्रान्तके हरप्या और मोहिनजोडेरो नामक प्राचीन स्थानोंमें जो खुदाई हालमे हुई है, उसमें चार-पांच हजार वर्ष ईसासे पूर्वकी चीजें मिली हैं। इनमेंके स्तूप आदिका सम्बन्ध अवश्य ही जेन धर्मसे प्रकट होता है। इन्हींमें एक मुद्रा भी है, जिसपर एक पद्मासन मूर्तिकी उपासना नाग छत्रको धारण किये हुए दो नागलोग कर रहे हैं । (देखो प्रस्तावना) इस मुद्रासे नागवंशका जैनधर्म प्रेम भगवान पार्श्वनाथके बहुत पहलेसे प्रमाणित होता है। इसके अतिरिक्त जिस समय श्री कृष्णजीके पुत्र प्रद्युम्नकुमार विद्याधर १-दी जै। स्तूप एण्ड अदर एटीटीन ऑफ मथुग प्लेट न.१२॥
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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