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________________ __१२८] भगवान पार्श्वनाथ । जब वे नाग और नागिनी धरणेन्द्र और पद्मावती होगये तो उसी समय अपने जन्मसिद्ध अवधिज्ञान (Clarroroyance) के बलसे उन्हें अपने उपकार करनेवाले राजकुमार पार्श्वनाथका ध्यान आया । 'वे शीघ्र ही बनारस आये और नम्रीभूत मुकटोंकी मनोहर कातिसे जिनके चरण पूजित है ऐसे भगवान पार्श्वनाथकी उन्होंने पूजा की ! बहुविधि पूजा करके और कृतज्ञता ज्ञापन करके वे अपने निवासस्थानको चले गये ।' जैन शास्त्रोंमें इनका निवासस्थान पाताल अथवा नागलोक बतलाया गया है। यह स्थान जिस भूमंडलपर हम रहते हैं उस मध्यलोककी पृथ्वीके नीचे अवस्थित कहा गया है। वहापर इनके बड़े२ महल और भवन भोगोपभोगकी सुन्दर सामिग्रीसे पूर्ण यह शास्त्रोंमें लिखा हुआ है। प्रख्यात जैन ग्रन्थ श्री रानवार्तिकजीमे इसका उल्लेख इस तरह पर है: 'खरपृथ्वीभागे उपर्यधश्चैकैकयोजनसहस्रं वर्जयित्वा शेषे उल्लेख मिलता है। इससे हम इनके ये नाम जातिवाचक ही समझते हैं । उदाहरणके रूपमें सजयंत मुनि' की कथामें पद्मपुगण (पृ०५६) में दूसरे तीर्थंकर श्री अजिनाथजीके समयमें 'धरणेन्द्र' के प्रकट होनेका उल्लेख है । 'पुष्पाजलि व्रतकया' तथा 'पुण्याश्रव क्थाकोप' (पृ. २६०) में ऐसे ही 'पद्मावती' का सहायक होना पार्श्वनाथजीसे पहले वतलाया. गया है। -पद्मावतीचरित्र-'पाताले वसिता।-श्री वृहत्पद्मावतीस्तोत्र-पातालाधिपति' श्लोक २२. हरिवगपुराण पृष्ठ ३३-'मणि और सूर्यसमान देदीप्यमान पाताललोकमें असुरकुमार नागकुमार आदि दश प्रकारके भवनवासी देव यथायोग्य अपनेर स्थानोंपर रहते है ।' २-तत्वार्थसूत्रम् (S. B. J. Vol. II) पृ० ७९.
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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