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________________ ९८ ] भगवान पार्श्वनाथ | बनारसको अपनी कथाका मुख्य स्थान बतलाता है तथापि जिन और अर्हन्का मिलकर संसार में उपदेश देनेका उल्लेख भी इसी भावका समर्थक है, क्योकि भगवान पार्श्वनाथ और महावीरस्वामीका धर्म कही अलग २ नहीं रहा था । तिसपर कतिपय विद्वान् तो भगवान पार्श्वनाथ मुख्य शिष्योंका महावीरस्वामीके संवमें सम्मि लिस होना, स्पष्ट उल्लेखों के द्वारा बतलाते हैं।' वस्तुत: यह है भी ठीक, क्योकि एक तीर्थकरके निर्वाण उपरान्त दूमरे तीर्थंकरके उत्पन्न होने तक पहले तीर्थंकरका शासनकाल जैनगास्त्रों मे बतलाया गया है । इसके उपरान्त नये तीर्थंकरका शामनकाल व्याप्त होजाता है और पूर्व तीर्थकरके अनुयायी नये तीर्थकर की शरण में स्वभावत 'पहुंचते है । उदाहरण रूपमें भगवान महावीरके पहले तक भगवान पार्श्वनाथका शासन चल रहा था, परन्तु महावीरस्वामी के तीर्थंकर होनेपर उनका शासन चल निकला | तीर्थकरों के उपदेशमें भी कोई अन्तर प्राय नहीं होता है । इसी कारण पूर्वागामो तीर्थकरके अनुयायी नवीन तीर्थंकरकी शरण में आते जरा भी नहीं हिचकते है प्रत्युत वह तो बड़ी भारी उत्सुकता से नवीन तीर्थंकर के आगमनकी बाट जोहते हैं, क्योंकि पहले तीर्थंकरको दिव्यध्वनिसे वह आगामी होनेवाले तीर्थंकरका विवरण जान लेते है । अतएव है और या २५७ वर्ष जीवित रहा कहा है । ( Asiatick Researches, Vol IX. p. 209) उनसे भी 'जिन' से भाव भगवान पार्श्वनानजीका ही निकलता है, क्योकि ईस्वी ९०० में उन्हीं सनि प्रमाणित है | देवकी भूमिग। CO (S. B. E ) भूमिका, कारपेट उत्तरायान
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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