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________________ ९६ ] भगवान पार्श्वनाथ । देवोदासको डिगानेके लिए उकसाया । चौसठ योगिनी और बारह आदित्य इस प्रयासमें असफल हये। आखिर महादेवके भेजे गनेशनी एक ज्योतिषिके स्वरूपम आए। वनायिकियोंकी सहायतासे उन्होंने काशीकी प्रजाकी रुचि बदलना प्रारम्भ की और उनको होनेवाले तीन अवतारोंके लिए तैयार किया। । पहले ही विष्णु 'जिन' के स्वरूपमे आये, जिन्होने वेदोमें बताए हुए यज्ञो, प्रार्थनाओं, तीर्थयात्राओ और क्रियाकाडोंका विरोध किया और बतलाया कि सत्य धर्म किसी जीवित प्राणीको न मारनेमें ही है । इनकी सहगामिनी (Consort) जयादेवीने इस नये धर्मका प्रचार अपनी जातिमें किया। कागीके निवासी संशयमें पड़ गये । इनके बाद महादेव अहन या महिमनके रूपमें अपनी पत्नी महामान्यके साथ आए । महामान्यके अनेको पुरुष स्त्री सेवक थे। इन्होने 'जिन' प्रणीत सिद्धातोका समर्थन किया और अपनेको ब्रह्मा , और विष्णुसे वह चढ़कर बतलाया। स्वय 'जिन' ने यह बात स्वीकार की। फिर दोनोंने ही मिलकर सारे ससारका भ्रमण और अपने सिद्धातोको फैलानेका उद्योग किया । आखिरको ब्रह्मासे भी न रहा गया और वह 'बुद्ध' के रूपमें आ अवतीर्ण हुए। इनकी सहगामिनी 'विज्ञ थी। इन्होने भी अपने पूर्वके दो अवतारोके अनुसार उपदेश दिया और ब्राह्मणकी स्थितिसे राजाको बरगलाना शुरू कर दिया । दिवोदासने वडी रुचिसे इनका उपदेश सुना । परिणामत उसे अपने राज्यसे हाथ धोने पड़े। महादेव खुशीर काशी लौट आए। दिवोदासने गोमतीके किनारे एक दूसरा नगर बसाया। महादेवनीने काशीके लोगोंको समझानेके प्रयत्न किये, परन्तु सत्र
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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