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________________ ५८] भगवान पार्श्वनाथ । भगवान था, जैसे सारीपुत्त, वैदेहीपुत्त ( अजातशत्रु मगधाधिपका दूसरा नाम), मौदिकपुत्त (-उपक), गोधिपुत्त (=देवदत्त)। परन्तु माता और पिता अपने प्रख्यात् पुत्रकी अपेक्षा किसी नामसे परिचित प्रायः नहीं हए हैं। यदि किसीका पत्र प्रसिद्ध हआ भी तो उसके माता-पिता 'अमकके माता-पिताके रूपमें कहे गए हैं। तथापि पिताके नाम अपेक्षा भी पुत्रका नाम कभी नहीं रक्खा गया है । माताका नाम भी उसका खाप्त मूल नाम नहीं होता है, बल्कि वह उसके वंश या कुलका नाम होता है "६-समाजमें प्रतिष्ठित पदकी अपेक्षा पड़ा हुआ नामअथवा सम्बोधित व्यक्तिके कर्मानुसार नाम । ऐसे नाम ब्राह्मण, गहपति, महाराज, आदि हैं। "७-शिष्टाचार या विनयरूप सम्बोधन-जिसका सम्बंध संबोधित व्यक्तिसे तनिक भी नहीं हों, जैसेभन्ते, आवुसो, अय्ये आदि। ___"८-अन्ततः साधारण नाम-जो किसी व्यक्तिके सम्बोधन करने में व्यवहृत नहीं होता है, बल्कि मूल या गोत्रके नामके साथ जोड़ दिया अथवा अगाड़ी लिखा जाता है, जिससे उसी नामके एकसे अधिक मनुष्योका बोध होसके..... इन नामोंको किस ढंगसे कब व्यवहृत करना चाहिये, इसके लिए बतलाया गया है कि वरावर वालोंमें, जब उनमें मित्रताकी पूरी छूट न हो, उपनाम या मूल नामा व्यवहारमें लाना अशिष्ट समझा जाता था। वुद्ध ब्राह्मणोंको 'ब्राह्मण' नामसे उल्लेख करते हैं । परन्तु वह ही अन्य साधुओको 'परिवानक' न कहकर उनके गोत्र नामसे पुकारते हैं। सच्चक निगन्य (जैनी)को वह उसके गोत्र 'अग्गि वेस्सायन' के नामसे
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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