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________________ २४] । भगवान पार्श्वनाथ । ऐसे विद्वान् भी अगाड़ी आ रहे हैं जो सप्रमाण पृथ्वीको स्थिर बतलाने लगे है । सारांश यह कि इस जमानेमें जो उन्नति हुई है, वह अपनी पराकाष्ठाको नहीं पहुंची है । बल्कि जैन ग्रंथोंके वर्णनको ध्यानमें रखकर हम कह सक्त है कि अभी सेरमे पौनी भी नहीं कनी है । अतएव उन्नतिकी इस नन्हीं अवस्थामें यदि पहिले जैसी बातो और देशोंका पता हमे न चले और हम उन्हें अचंभे जैसा मान लें, तो उसमें विस्मय ही कौनमा है ? यह हमारी संकुचित बुद्धिका ही दोष है ! अस्तु, यहांपर इस कथामें विस्मय करनेकी कोई आवश्यक्ता नही है । मरुभृतिका जीव जो अच्युत स्वर्गमें देव हुआ था, वह वहां अपने सुखी दिन प्राय पूरे कर चुका । पाठकगण, उसके लिये स्वर्गसुखोंको छोडना अनिवार्य होगया। वहामे चयकर वह वनवीर नामक भूपालके यहा बड़ा भाग्यवान पुत्र हुआ। यह राना पद्मदेशके अस्त्रपुर नगरके अधिपति थे। जम्बूद्वीपके मध्यभागमें अवस्थित मेरु पर्वतके पश्चिम भागमे एक अपरविदेह नामक क्षेत्र बताया गया है । यह बडा ही पुण्यशाली क्षेत्र है। यहाके जीवोंके लिये मोक्षका द्वार सदा ही खुला रहता है । यहा जैन मुनियोंका प्रभाव चहुओर फैला मिलता है । अहिंसा धर्मकी शरणमें सब ही जीव आनन्दमे काल यापन करते है। इसी क्षेत्रमे अस्वपुर नगर था। राना वजवीर बडे नीतिनिपुण जिनरानभक्त राजा थे । उनकी पटरानी विनया बडी ही मुलक्षणा और सुकुमारी थी । एकदा पुर्वपृन्यवशात गनीने मोते हुये रातके पिछले पहरमें पाच शुभ बम देये। पहले मेल्पवंत देखा, फिर कममे सूर्य, चंद्र, विमान
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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