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________________ २२] भगवान पार्श्वनाथ ।। शशिप्रभ नामक देव हुआ। अवधिज्ञानके बल उस देवने अपने पूर्व भवमे किये गये व्रतोका माहात्म्य जान लिया । सो यहां भी वह खूब ही मन लगाकर भगवद्भजन करने लगा। महामेरु, नंदीसुर आदि पूज्यस्थानोंमें जाकर वह बडे भावसे जिन भगवानकी पूजनअर्चन करता था। सोलहसागर तक वह स्वर्गाके सुखोका उपभोग करता हुआ विशेष रीतिसे पुण्य संचय करता रहा। अंतमें वहांसे चयकर वह देव जंबूद्वीप पूर्व विदेहके पुष्कलावती देशके उन्नतशैल विजयापर बसे हुये विशाल नगर लोकोत्तमपुरके राजा भृपाल और रानी विद्युत्मालाके अग्निवेग नामक सुन्दर राजकुमार हुआ । - राजकुमार अग्निवेग बडा ही सौभाग्यशाली, सोमप्रकृति, प्रवीण और सफल शुभ लक्षणोका धारी था। पूर्वसंयोगसे इस भवमें भी उसकी भक्ति श्री देवाधिदेव निनदेवके चरणोंमें कम नहीं हुई थी। पुण्यात्मा जीवोको धर्म हरजगह सहाई होता है । राजकुमार मग्निवेग सबके लिए सुखका ही कारण थे। युवा होनेपर इन्होंने राज्यसंपदाका उपभोग किया । एकरोज इनका समागम एक स्वपरहितकारी साधु महाराजसे होगया। इन्होंने उनकी विशेष भक्ति की और उनका उपदेश सुनकर इनके हृदयमें वैराग्यकी लहर उमड़ आई-यह मुनि होगये । ____राजर्षि अग्निवेग तिलतुष मात्र परिग्रहतकका त्याग करके परम तपोंको तप रहे थे कि अचानक पूर्वसंयोगसे अपने मरुभूतिके पूर्वभवमें बांधे हुये वैरके कारण कमठका जीव नर्कसे निकल करके. जो फिर अजगर सर्प हुआ था, इनके पास आ धमका ! हिमगिर 'गुफामें अवस्थित इन धीरवीर मुनिराजको इसने फिर डस लिया।
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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