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________________ भगवान् महावीर --mam उस समय प्रधान धंधा कृषि का ही समझा जाता था। आजकल की तरह न तो उस समय यहाँ की जनसंख्या ही इननी बढ़ी हुई थी और न यहाँ का अन्न विदेशो में जाता था । इस कारण सत्र व्यक्तियों के हिस्से मे जीवन-निर्वाह के पूर्ति या उससे भी अधिक जमीन आती थी । खेती की उत्पन्न का दसवाँ हिम्मा जहाँ राज्य कोप में जमा कर दिया कि बस सब ओर से निश्चिन्तता हो जाती थी। सरदारों-सरकारी कर्मचारियों और पुरोहितो को इनाम की जमीन भी मिलती थी. पर उस जमीन का इन्तिजाम उनके हाथ में नहीं रहता था। इन्तिजाम के लिये दूसरे कृपिकार नियुक्त रहते थे। पैसे लेकर मजदूरी करने का रिवाज उस समय बिल्कुल न था । मजदूरी को लोग हेच समझते थे। सब लोग अपनी स्वतंत्र आजीविका से कमाते और खाते थे। न उस समय धनाढ्य और अमीर मिलते थे न निर्धन और गरीव । वहत बड़े कारखाने और फर्स भी उस समय नहीं थे। सब लोग अपने और अपने कुटुम्ब के निर्वाह के लायक छोटा सा धन्धा कर लेते और सन्तोष-पूर्वक जीवन-यापन करते थे । केवल ब्राह्मणो के स्वार्थ की मात्रा बढ़ी हुई थी। और इसी कारण समाज के इतर लोगो के हृदय में उनके प्रति घृणा के भाव उदय हो रहे थे। सामाजिक स्थिति उपरोक्त विवेचन पढ़ने से पाठको के मन में उस समय की राजनैतिक और आर्थिक अवस्था के प्रति कुछ श्रद्धा की लहर का उठना सम्भव है । पर उन्हे हमेशा इस बात को ध्यान में
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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