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________________ भगवान् महावीर २८२ पर रास्ते में एक स्थान पर मारा गया। कुरिणकराज के पश्चात् राज्य के प्रधान पुरुषों ने उसके पुत्र “उदायो" को सिंहासन पर बैठाया । उसने प्रजा का बड़े ही न्यायपूर्वक पालन किया, इसके द्वारा जैन धर्म की वहुत तरक्की हुई। केवल ज्ञान की उत्पत्ति से लेकर निर्वाण प्राप्ति के पूर्व तक भगवान् महावीर के परिवार में चौदह हजार मुनि, छत्तीस हजार आर्जिकाएँ, तीन सौ चौदहपूर्व धारी मुनि, तेरह सौ अवधिज्ञानी मुनि, सात सौ वैक्रियिक लन्धि के धारक, उतने ही केवली, उतने ही अनुत्तर विमान में जाने वाले, पाँच सौ मनः पर्यय ज्ञान के धारक, चौदह सौ वादी, एक लाख उनसठ हजार श्रावक, और तीन लाख अठारह हजार श्राविकाएं हो गई। ___ इन्द्रभूति गौतम और सुधर्माचार्य के सिवाय शेष नौ गणधर मोक्ष गये । तत्पश्चात् भगवान महावीर अपापा नगरी में पधारे। प्रभु का अन्तिम उपदेश अपापा नगरी में रचे हुए समवशरण के अन्तर्गत भगवान् महावीर प्रतिष्ठित हुए। उस समय इन्द्र ने नमस्कार करके स्तुति करना प्रारम्भ की। इन्द्र की स्तुति समाप्त होने पर अपापा के राजा ने अपनी स्तुति प्रारम्भ की, उसके पश्चात् भगवान ने अपना निन्नावित अन्तिम उपदेश देना ग्रारम्भ किया : इस संसार में धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष ये चार पुरुपार्थ हैं। इनमें काम और अर्थ तो प्राणियों के नाम से ही अर्थ रूप है, चारों पुरुपार्थों में वास्तविक अर्थ रखने वाला तो एक
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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