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________________ अध्यात्म और दर्शन (वाम मोर पण्डित) २६७ ६२८ जैसे चोर सदा भयभीत रहता है अपने कुकर्म के वजह से दुःख पाता है वैसे ही अज्ञानी मनुष्य भी अपने कुकर्मों के कारण दुख पाता है, मृत्यु का भय होने पर भी वह सयम की आराधना नही करता। १२६ बाल जीव ऐसा मानता है कि धन, पशु तथा ज्ञाति जन मेरा रक्षण करेंगे। वे मेरे हैं मैं उनका हूँ परन्तु किसी प्रकार उनकी रक्षा नही होती अर्थात् आखीर मे उनको शरण नही मिलता। ९३० अपनी आत्मा को बालभाव मे नही दिखाना चाहिए । ९३१ वालजन अज्ञानी अपने कार्यों द्वारा कर्म का क्षय नही कर सकते है। मूढ आर्त ( आर्तध्यान सवन्धी कामो ) मे अजर अमर की तरह फसे हुए हैं। ९३३ वाल प्रज्ञ (मूर्खबुद्धिवाला) दूसरे मनुष्य की ही निंदा करता है। ६३४ अपने आपको पडित मानने वाले वालजन शरण रहित होते है। ६३५ वाल जन ही अभिमानी होता है।
SR No.010170
Book TitleBhagavana Mahavira ki Suktiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1973
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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