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________________ प्राध्यात्म और दर्शन (ज्ञान) २०७ ६२५ मति, श्रुत, अवधि, मन: पर्याय और केवल इस तरह ज्ञान पाच प्रकार का है। जान के विना जीवन मे चारित्र के गुणो की प्राप्ति नहीं होती है। समझ दो प्रकार की है, ज्ञान समझ और दर्शन समझ । ६२८ उपयोग की दृष्टि से ज्ञान एक प्रकार का है। ६२६ ज्ञानी मधुकर के समान होते हैं। ६३० ज्ञानी कभी खेद नही करते। ६३१ जैसे सिंह मृगो मे श्रेष्ठ होता है वैसे ही जनता मे बहुश्रुत व्यक्ति श्रेष्ठ होता है। ६३२ जैसे इन्द्र देवताओ का अधिपति होता है, वैसे ही विद्वान भी जनता मे प्रमुख होता है। ६३३ श्रु तशास्त्र का अध्ययन करके उत्तम अर्थ की, मोक्ष की खोज करे।
SR No.010170
Book TitleBhagavana Mahavira ki Suktiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1973
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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