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________________ धर्म और नीति (विनय) १४१ ४४७ इसी प्रकार धर्म रूपी वृक्ष का मूल विनय है और उसका अन्तिम फल मोक्ष है । विनय से मनुष्य को कीर्ति प्रशसा और श्रुतज्ञान आदि समस्त इष्ट तत्वों की प्राप्ति होती है। ४४८ जनके पास धर्म शिक्षा प्राप्त करे उनके प्रति सदा विनय भाव रखना चाहिए। ४४६ विनीत शिष्य आचार्य को कुपित जानकर प्रीतिकारक वचनो से उन्हे प्रसन्न करे, हाथ जोडकर उन्हें शान्त करे, और अपने मुह से ऐसा कहे कि 'पुन मैं ऐसा नही करूगा'। ४५० विनय स्वयं एक तप है और श्रेष्ठ धर्म है । ४५१ वैय्यावृत्य-सेवा से जीव तीर्थंकर नाम गौत्र जैसे उत्कृष्ट पुण्यकर्म का उपार्जन करता है। ४५२ रोगी की सेवा के लिए सदा जागरूक रहना चाहिए । ४५३ कलह और जीव हिंसा को वर्जनेवाला व्यक्ति सुविनीत होता है ।
SR No.010170
Book TitleBhagavana Mahavira ki Suktiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1973
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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