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________________ (७७) आयुष्कर्म १६ कारणो से बांधा जाता है और चार प्रकार से भोगा जाता है, नाम कर्मकारणों से वांग जाता है और २८ प्रकार से भोगा जाता है, गोत्र १६ कारणो से वाया जाता है और १६ प्रकार से भोगा जाता है, और अन्तराय कर्म का बन्ध ५ कारणो से पड़ता है और ५ प्रकार से ही उसका उपभोग किया जाता है । कर्मों को उत्तरप्रकृतियों तथा वन्ध, भोग सामग्री की व्याख्या जानने के लिए हमारे सहृदय पाठकों को पण्डित सुखलाल जी द्वारा सम्पादित कर्म-ग्रन्यो का अध्ययन करना चाहिए । यदि कोई सक्षेप मे इनका स्वल्प जानना चाहे उसे मेरे द्वारा अनुवादित श्री विपाक सूत्र के "प्राक्कथन" को पढ़ लेना चाहिए । यहां तो केवल जैनर्गन ने कर्मवाद के सम्बन्ध में जो सूक्ष्म और गभीर चिन्तन आध्यात्मिक जगत के सामने उपस्थित किया है, उस की झांकी दिखाने के लिए ये पक्तिया लिखी गई हैं। कर्म बड़े वलवान होते हैंकर्म एक शक्ति है यह बड़ी वलवान होती है इसके आगे क्सिी का का नहीं चलता है । कर्मगक्ति का प्रकोप जित जीवन में हो जाता है, उसे लोमहर्पक स्थितियो का सामना करना पड़ता है । जनसाधारण को बात तो जाने दीजिए। इसके प्रकोप से अनन्तवली तीर्थकर, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव आदि सभी महापुल्पो को अनेकानेक कप्ट ने पड़े है । इतिहास बतलाता है कि नादि तीर्थकर भगवान ऋपभदेव को बारह महीनो तक निराहार रहना पड़ा, कर्मनक्ति के प्रकोप के कारण ही परमतीर्थकर भगवान महावीर को साढ़े बारह वर्ष तक
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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