SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (७४) ३ वेदनीय कर्म-जिस कर्म के द्वारा सुख-दुख की उपलब्धि हो उस कर्म का नाम वेदनोय है । इस कम का फल मधुलिप्त तलवार को चाटने के समान होता है। धारा को चाटने पर शहद के चाटने से मिठास-जन्य सुख और जीभ के कट जाने पर व्रणजन्य दुख दोनो की प्राप्ति होती है। उसी प्रकार वेदनीय कर्म भी जोवन मे सुख-मय और दुःख-मय वातावरण लाने का कारण बनता है। ४ मोहनीय कर्म-जो कर्म आत्मा को मोहित करता है, उसे भले बुरे के विवेक से शून्य वना डालता है । अथवा जो कर्म आत्मा के सम्यक्त्व गुण का और चारित्र गुण का घात करता है उस कर्म को मोहनीय कहते है। यह कर्म मदिरा के समान है। जैसे मदिरा पीकर व्यक्ति हेय और उपादेय के विवेक को खो बैठता है, परवश हो जाता है, वैसे ही जीव इस कर्म के प्रभाव से सत्-असत् का विवेक खो कर कामनाओ और वासनाओ का दाम बन जाता है। ५ आयुष्कर्म-जिस कर्म की सत्ता से प्राणी जीवित रहता है और क्षोण हो जाने से मृत्यु को प्राप्त करता है वह कर्म आयुष्कर्म कहलाता है। यह कर्म कारागार (जेल) के समान है। जिस प्रकार कारागार में दिया हुअा व्यक्ति चाहता हुआ भी नियत अवधि से पूर्व नही छूट नही सकता, उसी प्रकार आयुष्कर्म के प्रभाव से जीव नियत समय तक अपने गरीर मे वन्धा रहता है। ६ नामकर्म-जिस के उदय से जीव नारक, तिर्यञ्च, मनुप्य और देव इन नामो पे सम्बोधित होता है उसे नामकर्म
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy