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________________ वश्य और शूद्र ये सव पापयोनि है, कोई कहता है कि 'शूद्र को ज्ञान नही देना चाहिए, न यज्ञ का उच्छिष्ट और न होम से बचा हुआ भाग और न उसको धर्म का उपदेश ही देना चाहिए। यदि कोई शूद्र को धर्मोपदेश और व्रत का आदेश देता है तो वह शूद्र के साथ असवृत नामक अन्धकारमय नरक मे जा पडता है। किन्तु भगवान महावीर का ऐसा विश्वास नही है । भगवान महावीर का कर्मसिद्धान्त सभी प्राणियो को धर्म-शास्त्र पढने का अधिकार देता है और सभी योग्य व्यक्तियो को मुक्ति का वरदान प्रदान करता है। कर्मवाद का विश्वास है कि प्रत्येक आत्मा योग्य साधन अपनाने पर परमात्मा पद को पा सकता है । लोहा सदा लोहा नही रहता, वह भी एक दिन पारस का सम्पर्क पा कर स्वर्ण बन सकता है। भव्य आत्मा भी सदा कर्म लिप्त नही रहने पाती, यदि वह अहिसा, सयम और तप की त्रिवेणी मे स्नान करले तो मुक्ति उससे दूर नहीं रहती है। भगवान महावीर का कर्मसिद्धान्त सभी के लिए स्वर्ग और अपवर्ग का द्वार खोल देता है। इसके सामने ब्राह्मण, क्षत्रिय का कोई प्रश्न नही है। सदाचारी चण्डाल भी यदि इसके सामने आ जाता है तो यह उस का भी पूर-पूरा आदर करता है, उसे भी मुक्ति के शाश्वत सुख से ओतप्रोत कर डालता है। * न शूद्राय मतिं दद्यान्नोच्छिण्ट न हविकृतम् । न चास्योपदिशेद् धर्म, न चास्य व्रतमादिगेत् ।। यश्चास्योपदिशेद् धर्म, यश्चास्य व्रतमादिगेत् । सोऽसवृत तमो घोर, सह तेन प्रपद्यते ॥ वशिष्ठ स्मृतौ १८-१२-१३
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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