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________________ आने पर वह अपने कर्ता को अवश्य फल देता है। इसीलिए भगवान महावीर कहते है "कडाण कम्माण न मोक्खु अत्थि" अर्थात्- कृत कर्म का नाश नही होता है। जब तक कृत कर्म का उपभोग न कर लिया जाए या तपस्या द्वारा उसे क्षय न कर दिया जाए तब तक वह नष्ट नही होने पाता। ___ महाभारत पर्व ३, अध्याय २०७ श्लोक २७ मे भी इसी सत्य को दोहराया गया है । वहा लिखा हैअन्यो हि नाश्नाति कृत हि कर्म, मनुष्यलोके मनुजस्य कश्चित् । यत्तेन किचिद्धि कृत हि कर्म, तदश्नुते नास्ति कृतस्य नाश ॥ . अर्थात्-इस मनुप्य लोक मे एक मनुष्य के द्वारा किए गए कों का फल दूसरा नही भोगता है। जिसने जैसे शुभाशुभ कर्मों का उपार्जन किया है उनका उपभोक्ता भी वही होता है । कारण कि विना फल भोगे स्वकृत कर्मों से छुटकारा नही हो सकता है। __ भगवान महावीर का सिद्धान्त कहता है कि जीव कर्म-फल भोगने मे परतत्र है, कृत कर्म का भुगतान जीव को करना ही पडता है, उस को विना भोगे या तपस्या ग्रादि द्वारा क्षय किए विना उससे पिण्ड नही छूटता है। किन्तु जीव की परतत्रता का अर्थ यह नही समझ लेना चाहिए कि-'जीव जो कर्म करता है, सका फल ईश्वर देता है,और वह उमी के अधीन है इसीलिए
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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