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________________ (६४) और उन शुभाशुभ प्रवृत्तियो का उत्तरदायी होने से शुभाशुभ फल भी ईश्वर को ही मिलना चाहिए । पर ऐसा देखा नही जाता है । देखा यह जाता है कि जीव स्वय ही अपने शुभाशुभ कर्म का शुभाशुभ फल पाता है । अत जीव को ही कर्म का कर्ता मानना चाहिए । ईश्वर के आदेश से ही सब कुछ होता है, ऐसा कभी नही समझना चाहिए । इस के अलावा, एक वात और समझ लेनी चाहिए कि प्रत्येक जीव शुभ कर्म द्वारा अपना जीवन उज्ज्वल वना सकता है ! भगवान महावीर के कर्म सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन का उत्थान और कल्याण कर पकता है । स्त्री हो या पुरुष, राजा हो या रक, काला हो या गोरा, भारतीय हो या अभारतीय, कर्म सिद्धान्त की दृष्टि से सम्यक् चारित्र की साधना करने पर एक दिन सभी मोक्ष के अधिकारी हो सकते है । जीवन की उन्नति या प्रगति किसी की वैयक्तिक, पाविारिक, सामाजिक या राष्ट्रीय सम्पत्ति नही है, उसे किसी देश, जाति या सम्प्रदाय के सकुचित क्षेत्र मे सीमित नहीं किया जा सकता है । यह तो प्राणवायु की तरह सब के उपयोग की वस्तु है । मिश्री किसी विशेष व्यक्ति या परिवार के लिए मीठी नही होती है जो भी उसका ग्रहण करता है, उस को उसकी मिठास का अनुभव हो जाता है । चाहे कोई शूद्र हो या चण्डाल, ब्राह्मण हो या क्षत्रिय, राजा हो या रक, भोगी हो या योगी, विद्वान हो या मूर्ख, सवल हो या निर्बल, धनी हो या निर्धन, मिश्री प्रत्येक व्यक्ति को मिठास प्रदान करती है । ऐसे ही कर्म - सिद्धन्त सभी को उन्नति का अवसर देता है, इसके यहा कोई भेदभाव नही है ।
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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