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________________ अच्छा या बुरा जो चाहे कोई भी वह कर्म कर सकता है। इस पर किसी की ओर से कोई भी प्रतिवन्ध नही लगा हुआ है। यदि यह मान लिया जाए कि '—मनुष्य जो कुछ करता है उसका मूल प्रेरक ईश्वर है । ईश्वर के सकेत के बिना पत्ता भी कम्पित नही हो पाता है-"। तो ऐसे अनेको प्रश्न उपस्थित हो जाते है, जिनका कोई सन्तोषजनक समाधान नहीं मिलता है। हम देखते है कि ससार मे पापाचार हो रहा है, भ्रष्टाचार फैल रहा है, कही भेड, बकरी, गाय, भैस आदि पशुओ की गरदनो पर छुरिया चलाई जा रही है, उनके रक्त के साथ होली खेली जा रही है, कही राह चलती लडकियो के साथ अश्लील उपहास किया जाता है. उन पर कुदृष्टियो के प्रहार हो रहे है, कही पतिव्रता नारियो के पातिव्रत्य-धर्म को लूटा जा रहा है, कही विधवानो की शील के साथ खिलवाड की जा रही है, उनकी धरोहर को अजगर की भाति निगला जारहा है, कही सत्सग मे जूतिया चुराई जाती है, कही धर्म-स्थानो के दानपात्र तोडे जा रहे है, कही मन्दिर के देवी देवताओ के वस्त्राभूषण चुराए जाते है । इस प्रकार और भी न जाने ससार मे कितने कुकर्म किए जा रहे है । प्रश्न उपस्थित होता है कि यह सब कुछ किसके आदेश हो रहा है ? ये अमानुषिक व्यवहार किस की प्रेरणा से जीवन पाते है ? कौन है वह शक्ति, जो यह सव कुछ कराती है ? यदि वह ईश्वर है तो हम पूछते है कि पापाचार और भ्रष्टाचार को प्रोत्साहन देने वाली ऐसो अधम शक्ति के लिए ईश्वर जैसी पवित्र और निष्कलक सजा दी जा सकती है ? उत्तर स्पष्ट है, कभी नही । जो ससार के उज्ज्वल भविप्य को आग लगाने की प्रेरणा
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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