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________________ (४३) वाद कहलाता है । ससार के सभी पदार्थों में अनन्त धर्म पाए जाते हैं किन्तु द्रष्टा जब पदार्थ के सम्पूर्ण रूप को न देखकर उसके अपूर्ण रूप को देखता है और जब वह मान लेता है कि मैंने पदार्थ के सम्पूर्ण रूप को देख लिया है, तथा मेरे ज्ञान से बाहिर कुछ नहीं रह गया है. तभी गडबड पैदा होती है । अपूर्ण मे पूर्ण की कल्पना ही दार्शनिक मत भेदों का मूल कारण है । इसी से विरोध उत्पन्न होता है । स्याद्वाद इसी विरोध की आग पर शान्ति का पानी डालता है । स्याद्बाद की दृष्टि से सब धर्मों और मतमतान्तरों के प्रति सहिष्णुता प्राप्त होती है। इससे विचारो का संघर्ष सदा के लिए समाप्त हो जाता है। स्याद्वाद शान्ति का अमरदूत है । वह कभी किसी दर्शन से घृणा नहीं करता । यदि ससार के समस्त दार्शनिक अपने एकान्त श्राग्रह को छोड़ कर स्याद्वाद से काम लेने लगें तो सभी दार्शनिक प्रश्न सहज में ही निपट सकते हैं । स्यादवाद की समन्वय दृष्टि बढी विलक्षण है । उपाध्याय यशोविजय जी ने कितने सुन्दर शब्दों मे अनेकान्तवाद का रहस्य प्रकट किया है ? वे लिखते हैं. . यस्य सर्वत्र समता समता नयेषु तनयेष्विव । तस्यानेकान्तवादस्य का न्यूनाधिकशेमुषी ॥ तेन स्याद्रादमालब्य, सर्वदर्शन तुल्यतां । मोक्षोद्द ेशाविशेषेण यः पश्यति स शास्त्रवित् ।। माध्यस्थ्यमेव शास्त्रार्थी येन तच्चारु सिध्यति । स एव धर्मवाद स्यादन्यद्वालिशवल्गनम् ॥ माध्यस्थ्यसहित ं त्वेकपद -- ज्ञानमपि प्रमा।
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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