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________________ (४१) पुत्र कहा जाए तो विरोध हो सकता है, किन्तु पुत्र की अपेक्षा पिता, और पिता की अपेक्षा पुत्र कहने से विरोध नहीं रहने पाता । इसी प्रकार विभिन्न दृष्टिकोणों मे एक ही पदार्थ में अनेकों धर्म रहते हैं। और उन में कोई विरोध नहीं होता। इस विरोध को समाप्त करने की कला का नाम अनेकान्तवाद है। __अनेकान्तवाद के इस अनुपम तत्त्व को न समझने के कारण विश्व मे विविध धर्मी दर्शनी, मतों, पन्थों और सम्प्रदायों में विवाद होते दिखाई दे रहे है । एक धर्म के अनुयायी दूसरे धर्म को असत्य एवं मिथ्या बतलाते नहीं सकुचाते । वे अपने ही माने हुए धर्म या मत को सम्पूर्ण सत्य मान कर दूसरे धर्मों का विरोध करते हैं। परिणाम यह होता है कि वर्म के नाम पर विवाद पनप उठते हैं और कभी-कमा देश, जाति को महान क्षति उठाना पड़ती है। पाकिस्तान और हिन्दुस्तान के विभाजन के समय हिन्दुओं और मुसलमानों में जो मारकाट हुई, उसे कौन नहीं जानता ? वह भी मतान्धता का ही एक दुष्परिणाम था। यही मतान्धता शास्त्रीय भाषा में एकान्तवाद है । आज धर्म अगर बदनाम हो रहा है, तो उसका कारण एकान्तवाद ही है। एकान्तवाद होता तो अपूर्ण है, किन्तु वह सम्पूर्ण होने का दावा करता है और इसी झूठे दावे के आधार पर वह दूसरे धर्मों को मिथ्या होने का फतवा दे डालता है। अनेकान्तवाद को समझने के लिए जैनशास्त्रों में कुछ अन्धों का दृष्टान्त दिया गया है । वह बड़ा ही मनोहारी है । कुछ जन्म के अन्धों ने हाथी का नाम सुना था, किन्तु उस की श्राकृति का उन्हें ज्ञान नहीं था । सयोगवश एक दिन कहीं से हाथी आगया। अन्धों ने उस हाथो के भिन्न-भिन्न अंग छूए। किसी ने उस का पैर पकड़ा,
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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