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________________ अनेकान्त-बाद भगवान महावीर का दूसरा सिद्धान्त अनेकान्तवाद है । मानव-जीवन का सर्वतोमुखी उन्नयन करने के लिए भगवान ने संसार को अनेकान्तवाद का महासत्य समझाया । भगवान महावीर के समकालीन धर्मनेताओं और विद्वत्समाज मे जो विचार-संघर्ष चल रहा था. विचारों की हिंसा का जो गदा नाला बह रहा था, एकान्तवाद को लेकर जनमानस में असहिष्णुता का जो जहर बढ़ता जा रहा था, उस महारोग को जड़ से मिटाने के लिए संसार को भगवान महावीर ने अनेकान्तवाद का अमृतरस प्रदान किया था। दर्शनजगत में अने. कान्तवाद का बड़ा मौलिक स्थान है। दार्शनिक विचारों में समन्वय लाने का इस से बढ़कर अन्य कोई मार्ग नहीं है। अनेकान्तवाद और एकान्तमाद : संसार में दो तरह के व्यक्ति पाए जाते हैं। एक ऐसा है, जो कहता है कि जो मेरा है, वह सत्य है । उस का विचार है कि मेरी बात कभी गल्त नहीं हो सकता। मैं जो कहता हू', वह सदा सोलह आने सत्य होता है और जो दूमरा कहता है वह सर्वथा झूठ है, गल्ल है। दूमरे व्यक्ति का विश्वास है कि जो सत्य है, वह मेरा है । उस की धारणा है कि मुझे अपनी बात का कोई प्राग्रह नहीं है। मैं तो सत्य का पुजारी हूं। मुझे सत्य चाहिये। मै किसी को झूठा नहीं कहता और जो मेरा है वहां सत्य है. ऐमा भा मै नहीं कहता हूँ। मैं तो "जो सत्य है, वह मेरा है, ऐसा मानता हूँ और वह सत्य जहां कहीं से मुझे प्राप्त हो जाए, वहीं से मैं लेने को तैयार हूँ। भगवान महावीर की दृष्टि में
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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