SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बात। अब शात्रीय दृष्टि को देख लीजिए। शास्त्रीय दृष्टि से धन चुराने वाला व्यक्ति अपने अचौर्याणुव्रत का भंग करता है, किन्तु तिनका उठाने वाले का उक्त व्रत सर्वथा सुरक्षित रहता है। कारण स्पष्ट है । धन चुराते समय आत्मा में एक विशेष प्रकार के दुष्ट भाव पाए जाते है, चोरी के ख्याल होते हैं, किन्तु तिनका उठाने वाले के ऐसे भाव नहीं होते। मांसाहार और शाकाहार के सम्बन्ध में भी यही बात समझ लेनी चाहिए। हिंसा दोनों जगह है । तथापि दोनों में महान अन्तर है। मनुष्य के समान विविध क्रियाए करने वाले पशुओं के जीवन को लूट कर उनके मांस का आहार करना महापाप है और सजीव वनस्पति का भोजन करना सामान्य पाप है। क्योंकि पशुओं की हत्या करने में अतिशय क्रूरता, निर्दयता और कठोरता अपेक्षित है, जब कि वनस्पति की हिंसा मे वह बात नहीं होती है। एक बात और समझ लेनी चाहिए। कोई जीव एकेन्द्रिय है, कोई द्वीन्द्रि, कोई त्रीन्द्रिय, काई चतुरिन्द्रिय और काई पञ्चे न्द्रय है। इस तरह जीवों की नाना अवस्थाए पाई जाती हैं। ज्या-ज्यो इन्द्रियों की अधिकता होती चली जाती है, त्यों-त्यों उन की हिंमा में पाप की भी अधिकता होती चली जाती है । एकोन्द्रय जीव की अपेक्षा द्वीन्द्रिय जीव की हिंसा में अधिक पाप लगता है, और यही क्रम पञ्चेन्द्रिय जीव की हिंसा तक समझ लेना चाहिए। इस दृष्टि से भी मांसाहार शाकाहार की वरावरी नहीं कर सकता। मास शास्त्रीय दृष्टि से त्याज्य है, स्वास्थ्य की दृष्टि से परित्याज्य है, तथा आर्थिक दृष्टि से भी हेय है । इस सम्बन्ध में बहुत कुछ लिखा र कहा जा सकता है, किन्तु यह प्रस्तुत निबन्ध का विषय नहीं है । अत इस सम्बन्ध में यदि अवसर मिला तो स्वतंत्रता से लिखने का विचार
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy