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________________ (१८) क्या कोई कह सकता है कि उन मे कायरता थों ? गांधी जी ने अहि. सा की महाशक्ति द्वारा शक्तिशाली बृटिश सरकार का डट कर सामना किया और रक्त की एक बूट बहाए विना उसके पैर उखाड दिए । सैकडो वर्षों की भारत की दासता को अहिंसा के ही प्रताप से समान किया गया है। स्वयं गांधी जी कहा करते थे कि मेरा अहिंसा का सिद्धान्त एक विधायक शक्ति है। कायरता या दुर्वलता को इस में कोई स्थान नहीं है। एक हिंसक से अहिंसक बनने की आशा तो की जा सकती है, किन्तु कायर कमी अहिंसक नहीं बन सकता। सिंह, व्यान आदि हिंसक तथा अतिकर पशुओं से आकीर्ण वनो में अकेले भ्रमण करना, और ऐसे भीषण जंगली मे आत्म-सावना करना क्या बच्चों का खेल है ? आज के वीर कहे जाने वाले व्यक्ति तो सिंह की आकृति मात्र देखने से दम तोड़ बैठते हैं, पर भगवान महावीर, महात्मा बुद्व, स्वामी रामतीर्थ आदि उन अहिंसको की निर्भयता देखिए, जो अकेले वनों में घूमते रहे। सिंहों और व्यात्री के भीषण चिघाड़ो से भी जरा भयभीत नहीं होने पाए । वस्तुत अहिंसा वीरता का पावन स्रोत है और हिंसक भावनाओं को मिटाने में एक अपूर्व चमत्कार लिए हुए है । हिंसक से हिंसक पशु भी अहिंसक योगी के सामने आते ही वैरभाव छोड़ देता है। अहिंसा की इस सत्यता को भारत के महान सन्त पतंजल ऋषि ने ___"अहिंसाप्रतिष्ठायां तत्सन्निधौ वैरत्याग." इन शब्दो द्वारा व्यक्त किया है। रही भारत को पराधीन बनाने की बात, इस के सम्बन्ध में तो इतना ही निवेदन है कि भारत को पराधीन अहिंसा ने नहीं बनाया, बल्कि भारतीयों की फूट ने ही इन्हें पराधीन बना डाला है। पृथ्वी
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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