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________________ (१५) कुण्ड है। लकड़ी से बनी कड़छी की भी कोई जरूरत नहीं पड़ती। मन वचन और काया की प्रवृत्ति ही उस का नाम दे डालती है । ईन्धन जलाकर लकड़ियों को कोयला तथा भस्म बनाने की यहा कोई आवश्यकता नहीं होती है। अपने पापकर्मों को ही इस में जलाना होता है। यही अहिंसक यज्ञ है । इस की आराधना तथा उपासना से जीवन दुःखों से सदा के लिए छूट जाता है। अहिसा एक जलाशय है अहिंसा एक पवित्र जलाशय है,सरोवर है। इसमें विशेपता यह है के यह जीवन के अन्तरग मन का परिहार करता है, अन्तरात्मा को पवित्र बना डालता है । इसमे स्नान करने से अरमा निर्मलता तथा स्वस्थता को प्राप्त कर लेती है। अहिंसास्नान के आगे जलस्नान का कोई मूल्य नहीं है। प्रात. साय पानी में डुबकियां लगाने से यदि जीवन पवित्र बन सकता होता, मुक्ति के पट खुल जाते होते तो सर्वप्रथम जल में सदा रहने वाले मच्छ, कच्छप आदि जीव कभी के मुक्त हो गए होते । जलीय तथा जलचर जीवो का मुक्त न होना ही इस बात का प्रमाण है कि जलस्नान से जीवन निष्पाप या मुक्त नहीं हो सकता है । जीवन की पवित्रता का वास्तविक साधन तो अहिमारूप सरोवर है । विशुद्ध मन, वाणी और कर्म से उसमें स्नान करने से जीवन सर्वथा निष्पाप हो जाता है। उसके समस्त पाप धुन जाते है। अहिंसा प्रेम है, राग नहीं अहिंसा प्रेम है,इसे राग का रूप नहीं दिया जासकता । प्रेम और राग ये दो शब्द हैं। प्रेम गुण में होता है, राग भौतिक पदार्थों से होता है। राग तीन प्रकार का माना गया है-काम, स्नेह और दृष्टि। कामराग
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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