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________________ (६) का महापथ तथा आध्यात्मिकता का एक उज्ज्वल प्रतीक स्वीकार किया है। हिसा का अर्थ _ अहिंसा का प्रतिपक्ष हिंसा है। अहिंसा के स्वरुप का बोध प्राप्त करने के लिए सर्वप्रथम हिंसा के स्वरूप को जान लेना चाहिए। स्वनामधन्य आचार्य उमास्वानि ने स्वनिर्मित श्री तत्त्वार्थसूत्र मे प्रमन्त योग के साथ किए गए प्राणवध को हिंसा कहा है.प्रमत्तयोगात् प्राणव्यपरोपणं हिंसा । (त० अ०७ सूत्र ८) आचार्यवर उमास्वाति ने हिंसा की व्याख्या दो अंशा द्वारा पूर्ण की है। उनमें प्रमत्तयोग प्रथम है और प्राणवध, यह दूसरा अंश है। राग द्वाप से पूर्ण व्यापार या जीवनगत असावधानता का नाम प्रमत्तयोग है। प्राणों का वध प्राणवध कहलाता है । इन दोनों मे प्रथम अश कारण रूप से है जबकि दूसरा कार्यरूप से। जिस हृदय में राग द्वष की धारा प्रवाहित हो रही है, असावधानता का जहां सर्वतोमुखी प्रभाव है, प्रमाद जिसका नेतृत्व कर रहा है, उस हृदय द्वारा यदि किसी जीवन का अपहरण हो रहा है, उसे दुख या पीड़ा पहुँचाई जा रही है, तो वहा हिंसा का जन्म होता है, हिंसा की डाकिनी वहां साकार रूप धारण कर लेती है । जिस प्राणवध में रागद्वष नहीं है, किसी प्रकार की अन्य कोई क्षुद्रभावना भी नहीं है, तो वह प्राणवध प्राणों का नाशक होने पर भी हिंसा का रूप नहीं ले सकता। जीवन में अनेको धार ऐसे अवसर आते है कि हम किसी को बचाने या उसको सुख-आराम पहुंचाने का प्रयत्न करते हैं किन्तु
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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