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________________ महापुरुप ने खोला था । इन के अनेकों नाम है। जिस समय ये गर्भ मे थे, उस समय देवताओं ने स्वर्ण की दृष्टि की थी, इस लिये इन्हें "हिरण्यगर्भ" भी कहते हैं । इन के समय में ही ग्राम, नगर आदि की सुव्यवस्था हुई, इन्होंने ही उस धर्म की स्थापना की, जिसका मूल अहिंसा है, इसी लिए इन्हें आदि ब्रह्मा भी कहा जाता है। तथा प्रजा को असि (युद्धविधि), मपि (लेखनविधि), कृषि (खेती कर्म), शिल्प, वाणिज्य (व्यापार और विद्या इन छह कर्मों से आजीविका करना सिखलाया, इसलिए ये प्रजापति भी कहलाते है। अहिंसा,सयम और तप इस धर्म त्रिवेणी का सर्वप्रथम प्रवाह इन्हीं महापुरुष के अन्तर मे छूटा था, इस लिए ये धर्म के आदिकर तथा आदिनाथ भी कहे गए है। जैनधर्म की मान्यता के अनुसार भगवान ऋपभदेव जैनधर्म के प्रथम तीर्थकर थे। इनके पश्चात् अजितनाथ, संभवनाथ आदि अन्य तेईम तीर्थकर हो गए हैं । अन्तिम तीर्थकर भगवान महावीर म्वामी थे। भगवान महावीर का जन्म आज से लगभग २५५६ वर्ष पूर्व इस पवित्र भारत वर्ष के विहार प्रान्त में हुआ था । इनके पिता महाराज मिद्धार्थ थे, और माता महारानी त्रिशला। आपने अपने अलौकिक व्यक्तित्व और दिव्य आध्यात्मिक ज्योति मे भारतीय शनि के इतिधाम में एक क्रान्तिकारो युग का निर्माण करके धार्मिक, मामाजिक और राष्ट्रिय क्षेत्रों में नय म्फूर्ति, नव उत्माह तथा नय जीवनामंचार किया था। अविवेक और अनान के भीषण गर्त पमाननी मानवता का श्रादर्श प्रमाण दिग्बला कर सत्य, हादिया के पद सिंहामन पर विटनाया था, तथा दम तोड़ रही मानगाको जीवन रा मथुर दान दिया था।
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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