SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 219
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२०१) इन तीनो का त्याग कर देना चाहिए। "प्रशमरति" मे परिग्रह को पाश बतलाया है । बहा प्रश्नोत्तर रून मे इस सत्य को बडो सुन्दरता से व्यक्त किया गया है-- "पाशो हि को? यो ममताभिधान" अर्थात्-प्रात्मा को फसाने वाला जाल क्या है ? उत्तरममत्व भावना ही जाल है, यह जाल आत्मा को फसा लेता है। एक आचार्य कहते है"कि न क्लेशकर. परिग्रह', नदीपुर प्रवृद्धि गत" अर्थात्-नदी को वाढ की तरह बढी हुई सग्रहवृत्ति कौन सा क्लेश उत्पन्न नही करनी है ? भाव यह है कि सग्रहवृत्ति सभी प्रकार के क्लेशो और कष्टो को आमत्रित किया करती है। भक्तराज कबीर जी ने इस सम्बन्ध में बहुत सुन्दर बात कही है कबोर औधी खोपरी, कबहू धापे नाहिं । तोन लोक की सम्पदा, बरु आने घर माहि। अर्थात्-लोभ के कारण जिस की अकल चकरा गई है, उसे सन्तोष के दर्शन कभी नही हो सकते । भले ही तीन लोक की सम्पत्ति उसके घर मे आजाए, पर उसे तृप्ति नही हो. सकती। मुस्लिम शास्त्र ने भी इस भाव की पुष्टि की है। हजरत मुहम्मद की एक हदीस में लिखा है यदि मनुष्य को धन सम्पत्ति से भरपूर दो वन भी मिल जाए तो वह तीसरे की इच्छा करेगा। मनुष्य के पेट की का
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy