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________________ (१९९) शान्तिप्रिय चिन्तनशील व्यक्ति ने इस का समर्थन नही किया। किसी धर्म ने इस को स्वर्ग या अपवर्ग का कारण स्वीकार नही किया है । सभी इस का निपेध करते है । जैनागमो मे तो स्थान-स्थान पर परिग्रह को वहुत निन्दय और आपातरमणीय बतला कर उस के परित्याग के लिए बलपूर्वक प्रेरणा प्रदान की है। श्री स्थानागसूत्र द्वारा वर्णित नरकगति मे जाने के चार कारणों मे महापरिग्रह को एक स्वतत्र कारण बतलाया है । इस के अलावा उत्तराध्यन सूत्र में लिखा हैवियाणिया दुक्खविवड्ढणं धण, ममतबन्ध च महब्भयावह । अर्थात्-धन दुख बनाने वाला है, ममत्व-वन्धन का कारण है, और महान भय का उत्पादक है। कसिण पि जो इम लोयं, पडिपुण्ण दलेज्ज इक्कस्स। तेणावि से नं सन्तुस्से, इइ दुप्पूरए इमे आयो । । अर्थात्-यदि धन और धान्य से परिपूर्ण यह सारा लोक भी किसी एक मनुष्य को दे दिया जाए तो भी उसे सन्तोष होने का नही है। क्योकि लोभी आत्मा को किसी भी तरह तृप्त नही किया जा सकता है। सुवण्णरुप्पस्स उ पब्बया भवे, सिया हु केलाससमा असंखया। नरस्स लुहस्स न तेहि किंचि, इच्छा हु आगाससमा अणन्तिया ।।
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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