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________________ (१६३) विधाता नही कहता, तथा उसे कर्मफलप्रदाता नही बतलाता। जैनदर्शन का ईश्वर को ससार का सर्वेसर्वा स्वीकार न करना हो उस की नास्तिकता का मूल कारण है, ऐसी मान्यता है वैदिकदर्शन की। किन्तु इस मान्यता मे कोई तथ्य नही है। वैदिकदर्शन को उक्त मान्यता सर्वथा निराधार है, इस के पीछे कोई दार्शनिक बल नहीं है और नाही इस को शब्दशास्त्र का समर्थन प्राप्त है। आस्तिक-नास्तिक शब्द को व्याकरणसम्मत परिभाषा को समझ लेने के अनन्तर आस्तिक-नास्तिक सम्बन्धी वैदिकदर्शन सम्मत उक्त मान्यता स्वत ही निराधार प्रमाणित हो जाती है। सर्वप्रथम आचार्यदेव शाकटायन का अभिमत समझ लीजिए। आचार्यदेव अपने शाकटायन व्याकरण मे लिखते है दष्टिकास्तिकनास्तिका. ३/२/६१ दैष्टिकादयस्तदस्येति षष्ठ्यन्ते ठणन्ता निपात्यन्ते । दिष्टा प्रमाणानुपातिनी मतिरस्य, दिष्ट देव प्रमाणमिव मतिरस्येति वा दैष्टिक । अस्ति पुण्यपापमिति च मतिस्येत्यास्तिक । एव नास्तीति नास्तिक । शाकटायन व्याकरण के साथ-साथ पाणिनीय-व्याकरण सिद्धान्त-कौमुदी मे पण्डितप्रवर भट्टोजी दीक्षित ने भो आस्तिक और नास्तिक इन शब्दो पर अपना अभिमत प्रकट किया है। उसे भी जान लीजिए। वहा लिखा है अस्ति नास्ति दिष्ट मति 1४/४/६० तदस्य इत्येव । अस्ति परलोक इत्येव मतिर्यस्य स आस्तिक । नास्तीति मतिर्यस्य म नास्तिक । दिष्टमिति मतिर्यस्य स दैष्टिक ।
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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