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________________ (१५६) "कित्तिय-वन्दिय-महिया" यह पद स्पष्ट रूप से ईश्वर के कीर्तन तथा स्मरण की ओर सकेत कर रहा है । अत ईश्वर के कीर्तन, स्मरण करने मे पुरुषार्थ अवश्य करना चाहिए, किन्तु यह स्मरण ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए नही करना है। ईश्वर तो वीतराग है । लोग उस का नाम ले या न ले, इस से उस का कोई सम्बन्ध नही है। कोई नाम ले तो उस पर ईश्वर को कोई हर्ष नही, और कोई नाम न ले तो उस पर कोई रोष नही है । ईश्वर हर्ष-शोक की उपाधियो से सर्वथा विमुक्त है । अत उसको प्रसन्न करने के लिए ईश-स्मरण नहीं करना चाहिए। ईश्वर का स्मरण ईश्वर के लिए नही बल्कि अपने लिए करना है, अपनी शुद्धि तथा शान्ति के लिए ही ईश्वर का स्मरण किया जाता है और करना भी इसी विचार सेचाहिए। ईश को प्रसन्न करके कामना-पूर्ति की दृष्टि से उस का स्मरण करना- तो भाण्ड-चेष्टा के समान हो जाता है । जैसे भाण्ड राजा की प्रसन्नता के लिए उस की स्तुति करता है, और उससे अपना स्वार्थ साधना चाहता है, ऐसे हो जो भक्त, "स्तुति से ईश्वर प्रसन्न होगा और उस से अपनी कामनापूर्ति हो जायेगी" इस लिए ईश-स्तुति करता है । उसमे और उस भाण्ड मे कोई अन्तर नहीं है । क्योकि दोनो ही स्वार्थी हैं और स्वार्थ-परायणता दोनो मे एक जैसी ही पाई जाती है। ईश्वर का स्मरण और चिन्तन आत्मशुद्धि और आत्म-शान्ति * कीर्तित-देव मनुष्यो द्वारा स्तुति को प्राप्त, वन्दितजिसे वदना की गई है, महित-पूजित, सम्मानित ।
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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