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________________ (१५३) कर्मबद्ध आत्मा ही जन्म-मरण के चक्र में फंसा करती है, यह एक सर्वसम्मत सिद्धान्त है। अत. निष्कर्म ईश्वर अवतार ले, जन्म-मरण के पचड़े मे फसे, यह कैसे सभव हो सकता है ? ___ अवतारवाद का सिद्धान्त सर्वथा थोथा और खोखला सिद्धान्त है। इस के पीछे कोई दार्शनिक बल नही है। एक ओर ईश्वर सर्वशक्तिसम्पन्न माना जाता है, दूसरी ओर उसे अवतारवाद के पचड़े में फसाया जाता है। ईश्वर जव सर्वशक्तिंसम्पन्न है तो फिर वह मत्स्य, वराह और मनुष्य आदि का रूप धारण क्यों करता है ? क्या वह जहा बैठा है, वहीं से ही भूमि का भार हलकी नहीं कर सकता ? जव उसे पापियों का नाश ही करना है, उन का गला ही घोटना है, तो यह काम वह वही वैकुण्ठघाम में बैठा-बैठा क्यो नही कर देता? यदि उस में ऐसा करने की क्षमता नही है तो वह सर्वशक्तिसम्पन्न है, यह कैसे कहा जा सकता है ? दूसरी बात, पापियो का नाश करने मे भला उस भगवान की क्या महत्ता है ? और क्या ऐसा करने से पापं सदा के लिए खतम हो जायगा ? पापियो के नाश से पाप का नाश हो जायगा, यह मिथ्या विश्वास है। जनदर्शन कहता है कि पॉपी बुरा नहीं होता, पाप बुरा होता है। पापी का गला घोंटने से पाप नही मर सकता। क्योंकि पापी मर कर भी जहां जाता है, वही वह अपने साथ पाप के संस्कार लें जाता है। पापी के सुधार' का यह ढंग नही है। पापी का सुधार करना है तो पाप का गला घोटना पडता है। पाप की मृत्यु हो जाने पर पापी पापी नही रहता है, यदि वह सत्पथगामी बन जाता है तो धोरे-धीरे वाल्मीकि या अर्जुनमाली की तरह संसार का एक ऋषि बन जाता है। अत. पाप के विनाश के
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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