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________________ (१५०) जाता है । इसलिए जैनदर्शन कहता है कि जीव के परलोकगमन मे परमाणु ही कारण है, ईश्वर या किसी अन्य शक्ति का उस के साथ कोई सम्बन्ध नही है। परमाणुओ मे एक विलक्षण आकर्षण तथा चामत्कारिक शक्ति निवास करती है, उसी के कारण परमाणुओ द्वारा अनेकों ऐसे कार्य सम्पन्न होते हैं, जिन्हे सुन कर एक साधारण व्यक्ति तों विस्मित हो उठता है और उसे सर्वथा असभव मान बैठता है। पर आज के परमाणुयुग मे यह सब कुछ असभव नही रहा है । परमाणु कैसे-कैसे असभावित कार्य कर डालते हैं? इस का निर्देश कर्मवाद के प्रकरण मे कर दिया गया है। पाठक उसे देखने का यत्न करे। रही कर्मपरमाणुओ द्वारा फल देने की बात, इस के सम्बन्ध मे भी कर्मवाद मे प्रकाश डाला जा चुका है। जैनदर्शन का विश्वास है कि कर्मपरमाणु अपना फल स्वयं देते है, उस के लिए किसी न्यायाधीश (जज) की ज़रूरत नही है। जैसे शराब पीने पर व्यक्ति को नशा हो जाता है और दूध पीने पर व्यक्ति का मस्तिष्क पुष्ट होता है। शराव या दूध पीने पर उन का फल देने के लिए जैसे किसी दूसरे शक्तिमान नियामक की आवश्यकता नही होती, वैसे ही जीव को कायिक, वाचिक और मानसिक प्रवृत्तियो द्वारा उस के साथ जो कर्मयोग्य परमाणु सम्बन्धित होते है और राग-द्वेष का निमित्त पाकर आत्मप्रदेशो से लोह-अग्नि की भाति मिल जाते हैं, उन मे भी शराब और दूध की तरह अच्छा और बुरा प्रभाव डालने की शक्ति निवास करती है, जो चेतन के सम्बन्ध से व्यक्त हो कर जीव पर अपना प्रभाव डालती है और जिस से प्रेरित हुआ यह जीव ऐसे-ऐसे काम करता है जो उस के सुख और दुख का
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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