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________________ (१४८) साथ कार्मण शरीर रहता है जो जीव को सुख और दुख देता है और उसे एक योनि से दूसरी योनि मे ले जाने का कारण बनता है। माता के गर्भ मे कलल से भ्रूण, भ्रूण से शिशु, युवक व वृद्ध बनाने वाला भी यही है। शरीर-सम्बन्धी सभी बातो को निर्धारित करने वाला तथा जीव की चेतन शक्ति को आवृत करके उस के शुद्ध आनन्दस्वरूप को विकृत बनाने वाला भी यही है। इसी के प्रताप से जीव काम, क्रोध आदि विभावो मे परिणत होता रहता है। ___ कार्मणशरीर के सूक्ष्म पुद्गलो मे व्यक्ति के पूर्वकृत कर्म का फल देने की शक्ति वैसे ही निवास करती है, जैसे विद्युत्यन्त्र बैटरी (Battery) मे विद्युत शक्ति रहती है। इस शक्ति के प्रभाव से कर्म-परमाणु समय-समय पर जीव को अपने शुभा * प्राकृतिक नियमो के अनुसार जीवो को जो शक्ति कर्मफल प्रदान करती है, उसे कार्मण शरीर कहते है। जैनदर्शन का विश्वास है कि दीपक जैसे बत्ती के द्वारा तेल को ग्रहण करके अपनी उष्णता से ज्वाला रूप में परिणत कर देता है, वदन देता है । वैसे ही आत्मा काम, क्रोध, मोह, लोभ आदि विकारो से कर्मयोग्य पुद्गलो को ग्रहण करके उन्हे कर्मरूप में परिणत कर लेता है। उन्ही कर्म-पुद्गलो के समूह का नाम कार्मणगरीर है । इस कार्मणशरीर को कार्मणशक्ति या सूक्ष्मशरीर भी कहते है। कार्मणशरीर सारे चेतन शरीर मे व्यापक है, यह शरीर के किसी एक भाग मे केन्द्रित नही रहता है, प्रत्युत प्रात्मा को भाति सारे शरीर में व्याप्त है और आत्म प्रदेगो के साथ क्षीर-नीर की तरह मिला रहता है ।
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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