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________________ (१४४) पहुचने भी नही पाते, किन्तु राज्याधिकारी उन्हे पहले ही गिरफतार कर लेते हैं। यह सव कुछ क्यो होता है ? इसलिए कि वे लोग राज्य-मर्यादा को भग करना चाहते है। अत. राज्य-मर्यादाभग करने की योजना बनाने वालो को, या डाका डालने वालो को राज्य-मर्यादा-भग करने या डाका डालने के अनन्तर ही बन्दी बनाया जाए, इस से पूर्व नही, ऐसा कोई सिद्धान्त नही है। कर्मफलप्रदाता ईश्वर सर्वज्ञ है, सर्वदर्शी है, सर्वशक्तिसम्पन्न है, और साथ मे परमदयालु भी है । वह जानता है कि अमुक व्यक्ति यह अपराध करेगा, और इस समय करेगा। ऐसी दशा मे उसका कर्तव्य बनता है कि वह अपराधी की भावना को परिवर्तित कर दे, अपराध करने का जो उस ने निश्चय किया है उसे बदल दे, या उस के मार्ग मे ऐसो वाधाए उपस्थित कर दे कि जिस से वह अपराध कर ही न सके । इस के विपरीत यदि ईश्वर अपराधी के अपराधमय भावो को जानता हुआ भी, और उसे रोकने का सामर्थ्य रखता हुआ भी अपराधी को अपराध करने से नही रोकता प्रत्युत अपराधी को अपराध करने देता है तो यह मानना पडेगा कि वह भी अपने कर्तव्य से भ्रष्ट होता है । ऐसे कर्तव्यभ्रष्ट ईश्वर को कर्तव्यपालक, न्यायशील, दयालु और शन्तिप्रिय कैसे कहा व माना जा सकता है ? यदि कहा जाए कि ईश्वर ने जीवो को कर्म करने का स्वतन्त्रता दे रखी है। जीव यथेच्छ कर्म कर सकता है, ईश्वर उस मे वाधक नही बनता है । तो हम पूछते है कि ईश्वर लोगों को उन के कर्मों का फल ही क्यो देता है ? इसीलिए कि प्राणियो का सुधार हो या अपना मनोविनोद तथा अपने
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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