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________________ . (१२५) उक्त पक्तियो मे जगत्कर्ता ईश्वर पर पाने वाली जित श्रापत्तियो का उल्लेख किया गया है इन के अलावा ऐसी अन्य भी अनेको आपत्तिया उपस्थित की जा सकती है, किन्तु विस्तारभय से हम यही विश्राम लेते है । इन्ही आपत्तियो का कोई सन्तोषजनक समाधान नही मिलता है, तो अधिक उल्लेख करने की आवश्यकता भी क्या है ? . ईश्वर की प्रेरणा से कुछ नही होता-" । वैदिकदर्शन का विश्वास है कि मनुष्य जो कुछ करता है, वह सब ईश्वरीय सकेत के आधार पर करता है। मनुष्य जो खाता है, पीता है, उठता है, बैठता है, अधिक क्या ससार के प्राणियो द्वारा जो कुछ भी होता है, उस का मूलप्रेरक ईश्वर है। ईश्वर की इच्छा के बिना कुछ नहीं होता। इसी विश्वास को आधार बना कर कहा जाता है कि "करे करावे आपो आप, मानुष के कुछ नाही हाथ ।" पत्ता भी हिलता है तो उस की रजा से, यह उक्ति भी उक्त विश्वास के कारण ही जन्म ले सकी है। वैदिकदर्शन के मतानुसार काठ को पुतली को जैसे बाजीगर नचाता है, वैसे ही ईश्वर मनुष्य को नचाता है उस से पुण्य और पाप के खेल करवाता रहता है। किन्तु जैनदर्श का ऐसा विश्वास नही है । वास्तव मे बात ऐसी है भी नहीं। ईश्वर ही सब कुछ करता है, मनुष्य कुछ भी नही कर सकता, यह एक भ्रान्त तथा तथ्यहीन विचारधारा है। इस के अन्धेरे मे तो पापाचार, अत्याचार, भ्रष्टाचार को फलने का तथा खुल कर खेलने का अवसर मिलता है। फिर तो दुनिया भर के पापी यही कहेगे कि हम पाप थोड़े ही कर रहे हैं। हम कुछ
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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