SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (११४) विरोधी इच्छा नही रह सकती । पर ऐसा होता नही है । नित्य ईश्वर मे परस्पर विरोधिनी इच्छा भी पाई जाती है । ईश्वर को कर्ता मानने वालो का विश्वास है कि ईश्वर कभी जगत का निर्माण करता है और वही कभी उस का सहार करता है । जगत का निर्माण और सहार ये दोनो परस्पर विरोधी कार्य है । नित्य ईश्वर मे ये दोनो परस्पर विरोधी कार्य कैसे रह सकते है ? इसलिए यही मानना उपयुक्त है कि ईश्वर न जगत का निर्माण करता है और न उस का सहार ही करता है । ससार के निर्माण और सहार से ईश्वर का कोई सम्बन्ध नही है । वैदिकदर्शनसम्मत जगन्निर्माण वैदिकदर्शन मे जगत के निर्माण की जो बाते लिखी है, वे इतनी विचित्र है कि उन्हे पढ कर बरबस हसी छूट पडती है । मनुस्मृति मे जो लिखा है उस का साराश इस प्रकार है अपने शरीर से नाना प्रकार की प्रजा उत्पन्न करने की इच्छा से उस परमात्मा ने ध्यान करके पहले जल को उत्पन्न किया, फिर उस मे वीज का ( चिच्छक्ति का ) स्थापन किया । वह वीज सूर्य की कान्ति के समान सुवर्णमय अण्डा बन गया । उस अण्डे मे सकल-जगत उत्पादक स्वयं ब्रह्मा उत्पन्न हुए । उस ग्रण्डे मे एक वर्ष तक निवास करके उस भगवान ने ध्यान द्वारा उस अण्डे के दो खण्ड किए। उन दोनो खण्डो मे से ऊपर के खण्ड से स्वर्ग मीर नीचे के खण्ड से भूलोक, उन के मध्य मे आकाश और पूर्वादि आठ दिगाए तथा जल का शाश्वत स्थान समुद्र उस भगवान ने बनाया 1 " देखो, मनुस्मृति अध्याय २, श्लोक ८ से लेकर १३ तक । • ---
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy