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________________ (११२) भाई भाई का रक्त पी रहा है, कही भाई वहिन पर आसक्त हो रहा है, कही पुत्र मा को विप दे रहा है, उसका गला दवोच रहा है, कही विश्व को आग लगाने के लिए ऐटमवम, हाईड्रोजन वम और अन्य जहरीली गैसे वनाई जा रही है, कही अपनो महत्त्वाकाक्षाओ को सफल बनाने के लिए दलबन्दिया को जा रही है, कही धर्म के नाम पर जनमानस के साथ विश्वासघात किया जा रहा है, कही स्वर्ग और अपवर्ग का प्रलोभन देकर मानवता की हत्या चल रही है । इस तरह ससार के रगमच पर अन्य अनेकविध अनर्थकारी तथा पशुतापूर्ण अभिनय दृष्टिगोचर हो रहे है । क्या ससार के इन सभी भीषण और हृदयविदारक दृश्यो को देख-देख कर ईश्वर का मन लगता है ? उस की उदासीनता नष्ट हो जाती है ? क्या इसीलिए ईश्वर ने इस ससार का निर्माण किया है ? देखा, आपने ईश्वर का मनोविनोद | मनोविनोद की सामग्री भी कितनी विचित्र एकत्रित की गई है ? एक सामान्य भावुक व्यक्ति भो जिन दृश्यों से घृणा करता है, और सदा के लिए जिन को अपने जीवन से निकाल देता है, ऐसे भयावह और अनर्थकारी दृश्यो मे जरा भो वह रस नही लेता, किन्तु परमपिता परमात्मा उन्ही दृश्यो को देख देख कर जीता है, इन दृश्यों से उस का मनोविनोद होता है, वह आनन्दसागर मे डूब जाता है और यदि उसे ये दृश्य देखने को न मिले तो वह उदासीन हो जाता है । परमात्मा भी खूब रहा ? यह तो वही बात हुई कि एक आदमी मैदान मे गुड रख देता है, गुड के पास अनेको डण्डे भी रख छोड़ता है, इस के अनन्तर वहा बन्दरो को भेज देता है | गुड देखते ही वन्दर उस पर टूट पड़ते
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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