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________________ होने पर भी ईश्वर अध्यात्म जीवन का सर्वोपरि लक्ष्य है, ध्येय है, जीव ने स्वय को ईश्वरीय स्वरूप में प्रकट करना है, कर्मो के आवरण को हटाकर जीव ने स्वय ईश्वर बन जाना है। अत ईश्वर नमस्करणीय तथा सस्मरणीय है। यह ईश्वर का तीसरा रूप है, जिसे जैन लोग स्वीकार करते है । ईश्वर के सम्बन्ध मे अन्य अनेको रूप भी मिल जाते है किन्तु मुख्य रूप से आज इन्ही तीन रूपो का अधिक प्रचार एवं प्रसार देखने मे आता है । इसलिए यहा इन तीनो का हो सक्षिप्त परिचय कराया गया है। ___ उक्त वर्णन से यह स्पष्ट हो जाता है कि ईश्वर शब्द आज इतना लोकप्रिय बन गया है कि सभी पात्मवादी लोगो ने उसे अपना लिया है। यह बात दूसरी है कि ईश्वर शब्द के वाच्य मे या उसकी मान्यता मे अपने-अपने प्टिकोण को लेकर मतभेद रहता हो। इस सत्य से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि ईश्वर शब्द को वैदिक दर्शन के आदिकाल या यौवनकाल में जो पारिभापिक रूप दिया जाता था, वह तो कम से कम आज के युग मे समाप्त सा हो गया है। यही कारण है कि वैदिक दर्शन के अनुयायियो की भाति प्रांज जैन दर्शन के अनुयायियो मे भी ईश्वर शब्द को आदर से देखा व सुना जाता है। ईश्वर एक नहीं है-- वेदिकदर्शन का विश्वास है कि ईश्वर एक है, उसकी ममता करने वालो अन्य कोई आत्मा नही है । मनुष्य कितनी भी साधना करले, भक्त्ति और धर्म-कर्म के नाम पर अपना
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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