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________________ (९२) मुख्यरूप से उन के तीन विभाग किए जा सकते है और वे इस प्रकार है - ईश्वर एक है, अनादि है, सर्व व्यापक है, सच्चिदानन्द है, घट-घट का ज्ञाता है, सर्व-शक्तिमान है, जगत का निर्माता है, भाग्य का विधाता है, कर्मफल का प्रदाता है, ससार मे जो कुछ होता है, सब ईश्वर के सकेत से होता है, उसके इशारे विना वृक्ष का पत्ता भी कम्पित नही हो सकता । वह ससार का सर्वेसर्वा है। ईश्वर पापियो का नाश करने के लिए तथा धार्मिक लोगो का उद्धार करने के लिए कभी न कभी, किसी न किसी रूप मे ससार मे जन्म लेता है, वैकुण्ठ से नीचे उतरता है और अपनी लीला दिखा कर वापिस वैकुण्ठ धाम मे जा विराजता है । वह सदा स्मरणोय है, नमस्करणीय है। ईश्वर का यह एक रूप है, जिसे आज हमारे सनातन-धर्मी भाई मानते है । अव ईश्वर का दूसरा रूप समझ लीजिए___ईश्वर एक है, अनादि है, सर्वव्यापक है, सच्चिदानन्द है, घट-घट का जाता है, सर्वशक्तिमान है, ससार का निर्माता है। जीव कर्म करने मे स्वतत्र है, इसमे ईश्वर का कोई हस्तक्षेप नहीं है । जीव अच्छा या बुरा जैसा भी कर्म चाहे कर सकता है, यह उसकी इच्छा की वात है, ईश्वर का उस पर कोई प्रतिवन्ध नही है किन्तु जीवो को उन के कर्मो का फल ईश्वर देता है । अपनी लीला दिखाने के लिए, पापियो का नाश कन्ने के लिए प्रार धमियो का उद्धार करने के लिए ईश्वर अवतार धारण नहीं करता, भगवान से मनुष्य या पशु आदि के म्प मे जन्म नही लेना हे । वह नदा स्मरणीय है, नमस्करणीय है।
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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