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________________ (८१) कि विप का प्रभाव खतम हो जाए। वह नहीं चाहता कि विष अपना प्रभाव दिखलाए। पर क्या उसके न चाहने से विप का प्रभाव रुक जाता है ? उत्तर स्पष्ट है, कभी नही । विप तो, अपना असर दिखलाता ही है । ठीक इसी प्रकार जड कर्म मे जीव के सम्बन्ध से ऐसो शक्ति पैदा हो जाती है कि कर्मकर्ता के न चाहने पर वह उसको अपना फल अवश्य दे डालता है।' ___ एक और उदाहरण लीजिए। एक रसलोलुप व्यक्ति चटपटे भोजन खाता है, मिर्ची का आचार बडी मस्ती के साथ सेवन करता है। पर जब मुह जलता है, मिर्ची की तीक्ष्णता का अनुभव होता है, तो वह सी,सी करता है, व्याकुल होता है । मुह जल गया मुह जल गया, यह कह कर पडौसी के कान खा जाता है । शौच जाता है तो उस समय गुदा मे जलन होने से खिन्न होता है। हम पूछते हैं कि क्या रस के पुजारी और चटपटे पदार्थ खाने वाले उस व्यक्ति के न चाहने से भोजन की तीक्ष्णता अपना, प्रभाव दिखलाना छोड देतो है ? उत्तर स्पष्ट है, कभी नही। कर्मपरमाणुरो के सम्बन्ध मे भी यही बात है । वे भी कर्मकर्ता के न चाहने से पपना फल देने से नही रुकते है। जैनो का कर्मवाद इतना विलक्षण और युक्तियुक्त है कि इसे किसी भी तरह झुटलाया नहीं जा सकता। जैनो का कर्मवाद परमाणुवाद पर आश्रित है । परमाणुनो मे कितना आकर्षण है ? किस तरह से ये काम करते है और कैसे असभावित दृश्यो को प्रस्तुत कर देते है ? इन बातो को आज के परमाणुयुग ने बुिल्कुल स्पष्ट कर दिया है। परमाणुमो की विचित्र । और अद्भुत कार्यक्षमता अाज परोक्ष नहीं है, प्रत्येक , व्यक्ति उसे देख सकता है, समझ सकता है। हमारा चातुर्मास
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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