SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२) चाल करने के मेरे तीन उद्देश्य थे-१-युवकों मे धर्म-चर्चा करने का उत्साह बढेगा । २- युवक बोलने का ढंग सीख सकेंगे । ३- युवको को धार्मिक जानकारी प्राप्त होगी । उत्तरदाताओं के सभी उत्तर सुनकर उन मे जो स्खलना होती थी, उसका सुधार कर दिया जाता था। कई बार उपस्थित व्यक्तियों की ओर से भी प्रश्न किये जाते थे, उनका समाधान मैं कर देता था । इस तरह प्रश्नोत्तरो को लेकर अच्छा खासा समय बंध जाता था। • रात्रि को धर्म-चर्चा से जण्डियाला गुरु के सभी युवक प्रभावित थे, प्रसन्न थे और सभी इसमे सोत्साह रस लिया करते थे, किन्तु एक बात सब को अखर रही थी। वह थीऐसी पुस्तक का प्रभाव, जिस मे जैनसिद्धान्तो पर प्रकाश डाला गया हो । जैनसिद्धान्तो का बोध कराने वाली पुस्तको के न होने के कारण तात्त्विक ज्ञान का प्राप्त करना कठिन ही नही, बल्कि असभव सा हो जाता है। यदि ऐसी पुस्तके हो तो प्रत्येक व्यक्ति उन को पढ़ सकता है । पढ कर उनसे लाभउठा' सकता है, दूसरो को भी उन के द्वारा प्रतिलाभित किया जा सकता है । आज श्रावको मे तात्त्विक ज्ञान का प्राय.अभाव सा हो गया है। किसी से कुछ पूछा जाए तो कोई उत्तर नही मिलता । जैन ईश्वर को मानते हैं या नही ? यदि मानते है तो किस रूप मे ? जैनदर्शन ईश्वर का स्वरूप क्या बतलाता है ? जैनधर्म आस्तिक है, या नास्तिक ? आदि कोई भी प्रश्न किसी जैन के सामने रखा जाए, तो वह कोई . सन्तोषप्रद उत्तर नही दे पाता है। आमतौर पर जैन गृहस्थो - को यही कहते सुना है कि हमारे गुरु महाराज के पास चलो,
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy