SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जो मृत्यु के समय बनी रहती हैं । भगवान महावीर जीवन भर निर्वाण की ओर बढ़ने का ही प्रयत्न करते रहे और उन्होने अपनी प्रक्रिया द्वारा न जाने कितने साधको को निर्वाण साधना के योग्य बना दिया। प्रस्तुत पुस्तक प्रस्तुत पुस्तक का नाम है 'पञ्च-कल्याणक' मैं यहा कल्याणक शब्द की विशेष व्याख्या नहीं करना चाहता, क्योकि प्रत्येक कल्याणक के लेखक ने कल्याण शब्द की थोडी या विस्तृत व्याख्या अवश्य की है। फिर भी इतना कहना अवश्य ही उपयुक्त समझता हूं कि तीर्थकरो के जीवन की पाच घटनामो को जैन भाषा कल्याणक कहती है-च्यवन अर्थात् अात्मा का अन्य लोको से इस लोक मे अवतरण, जन्म, दीक्षा, केवल ज्ञान और निर्वाण । तीर्थङ्करो के जीवन की ये पाच घटनाए कल्याणकारिणी होती है। जैन सस्कृति केवल उन्ही महापुरुपो के लिये तीर्थकर शब्द का प्रयोग करती है जो इस धरती पर आते हैं, उन तीर्थो अर्थात् घाटो को खोलने के लिये जहा से चली हुई जीवन-नोकाएं ससार सागर से पार पहुंच सकती हैं। वे ऐसी समाज रचना कर देते हैं जिससे सभी को तरने का अवसर प्राप्त हो सके, वे स्वय भो तीर्थरूप होते हैं -क्योकि उनके सानिध्य मे पहुंच कर मनुष्य ऐसे ही अपने आपको पवित्र समझने लगता है, जैसे अग्नि के पास पहुंच कर व्यक्ति अपने आपको शीतप्रकोप से सुरक्षित समझने लगता है। महावीर ऐसे ही एक तीर्थकर थे। तीर्थङ्करो का धरती पर आगमन धरती के लिये कल्याणकारी होता है। भगवान महावीर की आत्मा के यहा आते ही विदेह की भूमि सुख-समृद्धि से परिपूर्ण हो गई । उनका जन्म उनके परिवार को यश-कीर्ति एव सुख-समृद्धि का कारण तो वना ही साथ ही उनका जन्म सारी मानवता के लिये कल्याणकारी बन गया । उन्होने दीक्षा ली अपने लिये ही नही सन्तप्त समाज के कल्याण के लिये वे उस ज्योति को ढूढने के लिये निकले जो युग-युग तक ससार को आलोकित कर सके । उनको केवल-ज्ञान की प्राप्ति सत्य के वास्तविक स्वरूप को [ सत्रह ]
SR No.010168
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy