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________________ भिक्षुक और भिखारी दोनों में अन्तर हैं । भिखारी पराश्रित रहता है, भिक्षा अवश्य मिले यह उसका उद्देश्य होता है, उसके मन में अधिक से अधिक और अच्छे से अच्छे पाने की वासना होती है, वह चिल्ला-चिल्ला कर लोगो को अपने भिखारीपन की सूचना देता है, वह भिखारी बन कर सोता है और भिखारी बन कर जागता है, उसकी भीख योजनावद्ध भीख होती है, परन्तु भिक्षुक पराश्रित नही, भिक्षा अवश्य मिले यह उसका ध्येय नही मिल जाने पर वह ले लेता है न मिलने पर वह दुखी नही होता। दो-चार दिन तो क्या दो चार मास भी यदि भिक्षा न मिले तो भी उसे भिक्षा की चाह नही होती । यही कारण है कि भगवान महावीर साढ़े बारह वर्षों मे केवल ३५६ दिन आहार लेते थे । भिक्षुक चाहता है उसे वह मिले जिस की गृहस्थ को स्वयं के लिये आवश्यकता न हो, वह सामान्य से भी सामान्य चाहता है, रूखासुखा चाहता है। भिक्षुक कभी किसी को अपने आने की सूचना नही देता, वह अनायास ही पहुच जाता है जिससे कि उसके लिये कुछ न बनाया जा सके, वह भिक्षुक वन कर सोता है, क्योंकि वह कल के लिये कुछ नही रखता, उसकी भिक्षा अनियोजित होती है, वह भिक्षुक हो कर जागता है, क्योकि उसकी जागृत चेतना किसी खाद्यपेय की इच्छा लेकर नही जागती, अत सास्कृतिक भाषामे ऐसे भिक्षुक को 'अकल्पित भिक्षाशी' कहा गया है । 1 ऐसे भिक्षुक खाने के लिये नही जीते, जीने के लिये कुछ खा लेते हैं । खाना उनका उद्देश्य नही होता। उनकी भावना होती है कि वे इतना कम खाए कि उनके हिस्से का भोजन भी अन्य को प्राप्त हो सके । इसलिये भगवान ने उपवास को अधिक महत्त्व दिया है । भोजन की सीमाए वाधकर होनेवाली अनेक विध तपस्याओ के विवरण इसके साक्षी हैं कि भिक्षुक का उद्देश्य अधिक से अधिक त्याग है, ग्रहण नही । प्रत भगवान महावीर ने भिक्षुओ का अर्थात् त्यागियो का एक बहुत बढा वर्ग तैयार कर दिया था भिखारियो का नही । एकाकी विचरण महावीर जब तक पूर्ण ज्ञान, अर्थात् केवल ज्ञान की उपलब्धि नही [ पन्द्रह ]
SR No.010168
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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