SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रास्ताविक व्याख्यान-वाचस्पति श्री क्रान्ति मुनि जी महाराज विश्ववन्द्य मगल मूति "भगवान महावीर" की स्मृतिया ग्राज चारो ओर सूर्य की किरणो के प्रकाश के ममान सर्वत्र ही फैल गई हैं और फैल रही हैं। मैं विश्वास-पूर्वक कह सकता हैं कि इस वर्ष में जैन-धर्म की जैसी प्रभावना हुई है और हो रही है वैसी सम्भवन सदियो पहले भी कभी न हुई होगी। प्राज मारा विश्व उस पुण्य-पुरुष का स्मरण कर रहा है, उस के गुणो का गान कर रहा है और उसके वताए पथ को जीवन का श्रेष्ठतम मार्ग कह कर अपनाने को प्रस्तुत हो श्रमण-भगवान महावीर और उनके पावन-पथ की ओर आकर्षण का कोई विशेष कारण अवश्य है,क्योकि मानवी वृत्ति सोद्देश्य प्रवृत्ति के लिये प्रसिद्ध है। मैं समझता ह कि वह कारण और कुछ नही है, भगवान महावीर का जीवन प्राज के मानव की समस्याओ का समाधान है, उसकी जिज्ञासाओ की पूर्ति है, उसके भटकते जीवन के लिये प्रकाश है और उसके जीवन का महान् सम्बल है, क्योकि मानवीय महत्ता की जो सार्वभौम व्याख्या भगवान महावीर और उनके पूर्ववर्ती तीर्थकरो ने उपस्थित की है वह व्याख्या आज तक कोई भी उपस्थित नहीं कर सका । यद्यपि अनेक सस्कृतियो ने किसी ऐसी अज्ञात शक्ति को भगवान माना है जो सर्वतन्त्र स्वतन्त्र है, सर्वशक्ति-सम्पन्न है, मष्टि का कर्ता-धर्ता है, वह परमात्मा भी भगवान महावीर की दृष्टि मे मानव ही है और कोई नहीं, अत वह परमात्मा भी महावीर के लिये कोई चमत्कार का [ नौ ।
SR No.010168
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy