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________________ धर्म और दर्शन (सम्यग्दर्शन) ७५ २७२ सम्यक्त्व के अभाव मे चारित्र-गुण की प्राप्ति नहीं होती। २७३ जो राग-द्वेप को जीतनेवाले हैं, जिन ने जो कहा है वही सर्वोत्तम मार्ग है, ऐसा जिसका अटल विश्वास है वही सम्यक् श्रद्धावान् है । २७४ सम्यग्दृष्टि के द्वारा दृष्टिसम्पन्न होकर साधक सुदुश्चर धर्म का आचरण करे। २७५ दर्शन सम्पन्नता से यह जीव क्षायिक सम्यग्दर्शन को प्राप्त करता है, जो ससार के हेतुभूत मिथ्यात्त्व का उच्छेद कर देनेवाला है । उससे आगे उसकी प्रकाश शिखा वुझती नही, वह उत्तरोत्तर ज्ञान और दर्शन को आत्मा से सयोजित करता है, तथा उन्हे सम्यक प्रकार से आत्मसात् करता हुआ विचरण करता है । २७६ सम्यग्दर्शन से रहित परमार्थ को न जाननेवाले ऐसे विश्रुत यशस्वी वीर पुरुषो का पराक्रम अशुद्ध है, वे सभी तरह से ससार की वृद्धि करने में सफल होते हैं। २७७ सम्यग्दर्शन से सम्पन्न तथा परमार्थ के ज्ञाता ऐसे विश्रुत यशस्वी वीर पुरुषो का पराक्रम शुद्ध है। वे दुख रूप ससार की वृद्धि मे सर्वथा निष्फल रहते हैं। २७८ मिथ्यात्वादि के प्रवाह मे बहते हुए तथा अपने पाप कर्मों के द्वारा कष्ट पाते हुए प्राणियो के लिए सम्यग्दर्शन द्वीप के समान विश्राम स्थल है। तत्त्वज्ञो का कथन है कि सम्यग्दर्शन से ही मोक्ष प्राप्त होता है।
SR No.010166
Book TitleBhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni
PublisherAmar Jain Sahitya Sansthan
Publication Year1973
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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