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________________ समभाव २५७ जो साधक सम्पूर्ण विश्व को समभाव से देखता है, वह न किसी का प्रिय करता है, और न किसी का अप्रिय ही। २५८ धर्मोपदेष्टा जिस प्रकार पुण्यवान्-धनवान् को उपदेश देता है उसी प्रकार तुच्छ-दीन, दरिद्र को भी उपदेश देता है और जिस प्रकार तुच्छ को उपदेश देता है उसीप्रकार पुण्यवान् को भी। २५६ समभाव वही साधक रख सकता है जो अपने आप को हर किसी भय से विलग रखता है। २६० साधक मिलने पर गर्व न करे और न मिलने पर शोक न करे । २६१ सलेखना मे स्थित साधक न जीने की अभिलाषा करे और न मरने की कामना करे। वह जीवन और मरण किसी मे भी आसक्त न होता हुआ समभाव मे रहे । २६२ सकट की घडियो मे भी मन को ऊंचा-नीचा अर्थात् डॉवा-डोल नही होने देना चाहिए। २६३ जो साधक आत्मा को आत्मा से जानकर राग-द्वेष के प्रसगो मे सम रहता है, वही पूज्य है। २६४ साधक को सदा समता का आचरण करना चाहिए । २६५ सुव्रती को सर्वत्र समता-भाव रखना चाहिए ।
SR No.010166
Book TitleBhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni
PublisherAmar Jain Sahitya Sansthan
Publication Year1973
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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