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________________ साधना २५१ तप नियम, सयम, स्वाध्याय, ध्यान, आवश्यक आदि मे जो यतनापूर्वक प्रवृत्ति है, वही मेरी वास्तविक यात्रा-साधना है । २५२ जैसे भुजाओ से सागर तैरना कठिन है वैसे ही सद्गुणो की साधना का कार्य कठिन है। २५३ सर्प जैसे एकाग्र-दृष्टि से चलता है वैसे एकाग्र-दृष्टि से चारित्र धर्म का पालन करना बहुत ही कठिन कार्य है । २५४ जैसे लोहे के जवो को चवाना कठिन है वैसे ही सयम-साधना का पालन भी कठिन है। मेधावी पुरुप ध्यान योग को स्वीकार करे और देह भावना का सर्वथा विसर्जन करे। २५६ उपयोग (विवेक) शून्य साधना केवल द्रव्य है, भाव नहीं । a
SR No.010166
Book TitleBhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni
PublisherAmar Jain Sahitya Sansthan
Publication Year1973
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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